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नौकरियों का भविष्य

                                                                नौकरियों का भविष्य          

                                                                                                चेतन भाई मौर्य

इस समय लोगों की नौकरियों पर टेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन नाम की तलवार लटक रही है है, और नए लोगों को  नौकरियां ढूढ़ना एक बड़ी चुनौती बन गयी है | भरी मात्रा में रोजगार देने वालेआईटी सेक्टर को भी इसने नही छोड़ा, जो कि खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मरने से बात हुई, AI टूल्स अब वही कोड लिखने में मात्र चंद सेकंड लेता है, जिसको लिखने के लिए प्रोफेशनल्स हप्ते या महीने भर लगाते थे |

 इंडियन एक्सप्रेस और अनस्टॉप की रिपोर्ट के हिसाब से हाल ही में पास हुए 83% इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स एंड 46% बी-स्कूल ग्रेजुएट्स को नौकरी नहीं मिली | रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कंपनियां इसका लाभ उठा रही हैं, और पिछले कुछ वर्षों की तुलना में कम वेतन की पेशकश की जा रही है, यहां तक ​​कि इनमें से 25% ग्रेजुएट्स इस उम्मीद में कि Training के अंत में उन्हें नौकरी मिल जाएगी, वे बिना किसी वेतन के ट्रेनी के रूप में काम कर रहे हैं।

बचपन में एक डेफिनिशन पढ़ी थी, "Energy neither be created nor destroyed, it is only transformed from one form to another ". Law of conservation of energy. पूरी तरह से तोह नही पर काफी हद तक ये नौकरियों के सन्दर्भ में ही फिट बैठी है. "टेक्नोलॉजी ने ही युवाओं को उनका मनपसंद काम  दिया जैसे कि इंस्टाग्राम पे मुजरा करना, यूट्यूब पर ज्ञान पेलना, और फेसबुक पे युवा नेता बन कर भौकाल टाइट करनाखैर! ये तोह मज़ाक था, कहने का मतलब है, अगले 5 सालों में AI और Automation की वजह से 48 लाख लो लेवल जॉब्स 18 लाख हाई लेवल जॉब्स  में बदल जाएँगी| इसलिए बड़े पैमाने पर लोगों को reskill या upskill करना पड़ेगा |


जबकि नई प्रतिभाओं को उचित रूप से पोषित करने की आवश्यकता है, और यह उच्च शिक्षण संस्थानों का कर्तव्य भी है, लेकिन अधिकांश भारतीय शैक्षणिक संस्थान केवल व्यवसाय हैं, हालांकि उन्होंने प्रवृत्ति के अनुसार नए पाठ्यक्रम पेश किए हैं, लेकिन Syllabus और Mentors अभी भी वही हैं।

हाल ही में सीबीआई ने NAAC के घोटाले की जांच की, जो रिश्वत लेकर संस्थानों को फर्जी रेटिंग प्रदान करता है, और उसके आधार पर संस्थानों को स्वायत्तता (Autonomous) मिल रही थी, लेकिन वास्तव में संस्थानों के पास पर्याप्त प्रोफेसर नहीं हैं, उन्होंने कोई शोध पत्र प्रकाशित नहीं किया है, अगर प्रकाशित किया है तो बहुत कम, इन संस्थानों से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं? वे एक (Industry Oriented) पाठ्यक्रम कैसे डिजाइन करेंगे, वे केवल एक पेपर सेट करने के लिए गाइड पुस्तकों का उपयोग करते हैं जिसे छात्र आसानी से पास कर सकते हैं | भारतीय प्रतिभाओं का भविष्य इन संस्थानों की हथेली में है, जिसे वे बंजर बना रहे हैं। हम इसकी क्लोजिंग नही देंगे क्यूंकि मै चाहता हु, आप खुद इस पर विचार करें |

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